सौतेला बाप ( भाग - 9)
अध्याय - 9
फुलवा जैसे ही बाहर भाग कर आई , सभी औरते और लड़किया उसे घेर लेती है और रात के बारे में पूछने लगती है।
" का हुआ फुलवा....इतना शरमा काहे रही?"
" अरी जिज्जी कइसा सवाल पूछती हो... जइसे पता नाही !"
" ई छोकरियों को भगाते है फिर बताना का - का हुआ!"
फूलवा सबकी बातों का क्या जवाब देती? औरतें जिसे शर्म का कारण समझ रही थी असल में वो वजह थी ही नहीं फूलवा के शरमाने कि। बल्कि फूलवा तो आज पहली बार प्यार के एहसास को समझ और उसे महसूस कर शरमा रही। शादी और एक बच्चे के बाद फूलवा को किसी से प्यार का एहसास हुआ , जिसे उसे खुद समझने में समय लगने वाला था।
वही मास्टर बाबू मधुआ को लिए बाहर निकलते है। बाहर औरते फुलवा के शर्म से भरे गालों का राज पुछ रही थी कि मास्टर बाबू मधुआ को गोद में लिए बाहर निकल फुलवा को पुकारे " मधुआ की माई... ईहा आपका गुशलखाना कहां है?"
फुलवा तो शर्म कर रसोई में ही भाग जाती है और औरते उसके पीछे भागती है बात जानने के लिए।
मधुआ अपने बापू को अपनी तरह गांव की बोली में बोलते देख हैरत से बोला - " तुम का - का जानत हो? तुमको अंग्रेजी आवत है , गूलु मारी वाली भाषा आवत है और तुम हमरी बोली बोलत हो!"
" तुमको अंग्रेजी आती है?"
" हां ई जो तुम बोल रहे...शहरी भाषा!"
मास्टर बाबू मुस्कुराए और बोले " मगर इसे खड़ी हिंदी बोली कहते है अंग्रेजी वो गुलु मारी वाली भाषा है!"
" अच्छा..!"
" चलो नहा कर तैयार हो जाए !"
" हम अपनी माई के बिना नाही नहात!"
" आज बापू के साथ नहाकर देख लो!"
मास्टर बाबू मधुआ को गोद में उठाए घर के बाहर निकलते है तो सभी आदमी उनके आगे पीछे घूमने लगते है।
" मास्टर साब... कछु चाही का!"
" नहाना था , एक बाल्टी और मग्गा!"
" अरे फूलवा के घर के पीछे गुशलखाना है , परधनवा चुनाव जीतने का वादा किया रहा तो सबके लिए गुशनखाना बनवाया!"
मास्टर बाबू गांव के प्रधान को देखने लगते है जो मुस्कुरा रहा था। वो बोला - " माई बोली रही कि औरतों को खुले में नहाने में दिक्कत होवत है , हमरी माई को भी हुआ रहा तो सबके घर में एक शौचालय बनवाए नेता जी से सिफारिस कर!"
गांव का परधान चंदन कुमार पांडे उर्फ चिंटू जो कि पैंतीस साल का युवक था , शहर से पढ़ कर आया था जो अपनी मां को भगवान मानता है और गांव के उन्नति के लिए चुनाव लड़ा। मास्टर बाबू आंगन में आते है और उधर से अपने कुर्ते और पैजामे और मधुआ के कपड़े लिए घर के पीछे वाले गुशल खानें में गए जिसमें दरवाजा नही था एक परदा लगा था।
उधर रसोई के पास बैठी फूलवा को घेरे औरते बैठी थी और नादान लड़कियां बात जानने के लिए इधर - उधर कान लगा रही थी कि आखिर क्या - क्या होता है सोहाग वाले रात में।
" कछु नाही हुआ मऊसी....बस मधुआ को ऊपर सुलाए और खुद नीचे बिछौना बिछा कर बैठे...!"
" हाय राम...फिर पाप कर दी ई लड़की। पति को नीचे सुलाई?"
" नाही जीज्जी ऊही नीचे सोए और हमे ऊहा बिठा कर....!"
" फिर का हुआ भौजी?" बगल की सोलह बरस की लाजो बोली।
रतना काकी लड़कियों को डपटने लगी - " कऊन बोला तुम लोगो का ईहा बात सुनने खातिर..? जाओ भागो नहाओ और घर के काम करो!"
झुमरी के साथ बाकी लड़कियां घर के बाहर निकल गई अपने अपने घर जाने के लिए। झुमरी कच्चे रास्ते से अपने घर की ओर जा रही थी कि उसे महसूस हुआ कि कोई उसके साथ - साथ चल रहा वो मुड़ कर देखा तो छगन उसके पीछे - पीछे आ रहा था।
कहानी जारी है..!!!
RISHITA
06-Aug-2023 10:15 AM
Nice
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Gunjan Kamal
17-Nov-2022 02:24 PM
बेहतरीन
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Rafael Swann
14-Nov-2022 11:51 PM
Bahut khoob 😊
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